मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल भारी मात्रा में नमी यानी पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं। यानी तेजी से संघनन होता है। ऐसे में कई लाख गैलन पानी एक साथ पृथवी पर गिरता है, वो भी एक सीमित इलाके में। इससे तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है।
पानी के आगे आने वाली हर चीज क्षतिग्रस्त हो जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो हर साल मॉनसून के समय नमी को लिए हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, लिहाजा हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में सामने पड़ता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं है कि बादल के सामने कोई ठोस वस्तु आएगी तभी वो फटेंगे। बादल फटने का दूसरा कारण गर्म हवा के झोंके से टकराना भी है।
गर्म हवा से टकराने से भी फटते हैं बादल
जब गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है। इसके कारण होने वाली बारिश करीब 100 मिलीमीटर प्रति घंटा होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है। जिस कारण भारी तबाही होती है।
भारत में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से प्रेगनेंट मॉनसून बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, तब हिमालय के क्षेत्र में उनके फटने का खतरा ज्यादा रहता है। इसी तरह 2009 में कराची में बादल फटने के कारण भारी तबाही हुई थी। हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं।
Source: oneindia.in
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